विलुप्त होता महुआ का पेड़
देश का पर्यावरण बचाना है तो हर एक व्यक्ति को पौधरोपण करना होगा। इसके लिए सरकार द्वारा भी वन विभाग कर्मियों को अपने-अपने रेंज में जिम्मेदारी सौंपी जाती है। इन्हीं में एक वृक्ष महुआ का भी होता है जिसके फल की पहचान ग्रामीण अंचलों में सूखे मेवे के रूप में की जाती है।बीते एक दशक से न तो वन विभाग कर्मियों ने इस पौधे का रोपण किया है और न ही ग्रामीण अंचल के किसानों ने। इसका नतीजा यह रहा कि दिनों दिन इन वृक्षों की संख्या कम होते चली जा रही है।विभाग के कर्मी महुआ का वृक्ष लगाना किसी अभिशाप से कम नही समझते। महुआ ऐसा वृक्ष है जो हर मायने में सबसे आगे है, वह चाहे उसकी लकड़ी हो या फल, फर्क सिर्फ इतना ही है कि महुआ का वृक्ष पांच से आठ साल के अंदर तैयार होता है, जिसकी आयु सीमा करीब चालीस से साठ साल के बीच होती है इन वर्षो के बीच महुआ का वृक्ष जहां होता है वहां के ग्रामीण सूखे मेवे के साथ-साथ हर प्रकार की बीमारियों में इसका इस्तेमाल करते हैं।
आज के लोग भले ही महुआ के बारे में कम ही जानते हैं। लेकिन, पुराने जमाने के लोग इसका इस्तेमाल अपने दैनिक जीवन में करते थे। बहुत सारी औषधीय गुणों से भरपूर महुआ का प्रयोग आयुर्वेद में बहुत सी बीमारियों से छुटकारा पाने के लिए किया जाता है। आपकी जानकारी के लिए बता दें इसके पत्ते से लेकर बीज तक में औषधीय गुण पाए जाते हैं। आइय़े बताते हैं इसके कुछ विशेष फायदे, जो आपके लिए काफी लाभकारी सिद्ध हो सकते हैं।
कहां पाया जाता है महुआ
महुआ का पेड़ भारत में मुख्यत, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहार, उड़ीसा, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात और राजस्थान में पाया जाता है। फागुन चैत में पत्तियां झड़ जाने के बाद इसके वृक्ष पर सफेद रंग के फूल लगते हैं। स्थानीय समुदाय इस पेड़ के छाल को औषधी के रूप में और फलों को भोजन के रूप में इस्तेमाल करते हैं। आदिवासी समुदाय के पुरुष और महिलाएं उत्सव पर इसका इस्तेमाल पेय के रूप में करते हैं। महुआ ओडिशा को एक मुख्य भोजन है।
महुआ की शराब
महुआ के फूलों से शराब बनायी जाती है। इसे संस्कृत में 'माध्वी' और ग्रामीण क्षेत्रों में आजकल 'ठर्रा' कहते हैं। महुआ का शराब भारत के अनेक आदिवासी क्षेत्रों में बहुत लोकप्रिय पेय है। उदाहरण के लिए मध्य प्रदेश के झाबुआ की महुआ की शराब काफी प्रसिद्ध है। यह शराब पूरी तरह से रसायन (केमिकल) से मुक्त होती है। इसी तरह, छत्तीसगढ़ के बहुत से भागों में भी महुआ शराब बनाया जाता है जिनमें बिरेझर (राजनांदगांव) और टेमरी (दुर्ग) में प्रमुख हैं।
शराब बनाने का तरीका
महुआ का फूल जब पेड़ से पूरी तरह से पक कर गिरता है, उसके बाद इस फूल को पूरी तरह से सुखाया जाता है। इसके बाद सभी फूलों को बर्तन में पानी में मिलाकर तथा इसमें अवश्यकतनुसार विभिन्न प्रकार के पेड़ों के छाल, फूल, पत्ते आदि मिलाकर ५-६ दिन तक रखा जाता है। उसके बाद उस बर्तन को आग पर गरम किया जाता है और गरम होने पर जो भाप निकलती है उसको नली के द्वारा दूसरे बर्तन मैं एकत्रित किया जाता है। भाप ठंडी होने पर महुआ की शराब होती है।
फल
इसका फल परवल के आकार का होता है और 'कलेन्दी' कहलाता है। इसे छीलकर, उबालकर और बीज निकालकर तरकारी (सब्जी ) भी बनाई जाती है।
महुआ के बीज
फल के बीच में एक बीज होता है जिससे तेल निकलता है। वैद्यक में महुए के फूल को मधुर, शीतल, धातु-वर्धक तथा दाह, पित्त और बात का नाशक, हृदय को हितकर औऱ भारी लिखा है। इसके फल को शीतल, शुक्रजनक, धातु और बलबंधक, वात, पित्त, तृपा, दाह, श्वास, क्षयी आदि को दूर करनेवाला माना है। छाल रक्तपितनाशक और व्रणशोधक मानी जाती है। इसके तेल कफ, पित्त और दाहनाशक है।
महुआ के बीज स्वस्थ वसा (हैल्दी फैट) का अच्छा स्रोत हैं। इसका इस्तेमाल मक्खन बनाने के लिए किया जाता है।
स्वादिष्ट भोजन के रूप मे-
महुआ का रोटी, गुड़, गुलगुला और हलवा बनाया जाता है।
महुआ के फायदे
आयुर्वेद में महुआ का इस्तेमाल अनेक प्रकार की बीमारियों का इलाज के लिए किया जाता है. महुआ में प्रोटीन, फाइबर और कार्बोहाइड्रेट्स जैसे कई पोषक तत्व पाए जाते हैं. जो मानव शरीर को अलग-अलग प्रकार से स्वास्थ्य लाभ प्रदान करता है जैसे-
1. डायबिटीज के लिए फायदेमंद- आयुर्वेद के अनुसार महुआ के पेड़ की छाल डायबिटीज के रोगी के लिए उपयोगी है।
2. दांत दर्द- जो लेग दांत दर्द से परेशान रहते हैं तो वो इसके छाल का इस्तेमाल करें।
3. सूजन और जलन- महुआ में कई ऐसे तत्व पाए जाते हैं, जो त्वचा में होने वाले सूजन और जलन को कम करते हैं।
4. गठिया रोग- महुआ की छाल गठिया के इलाज में भी काफी कारगर साबित होता है.
5. बवासीर रोग- महुआ के फूल को घी के साथ भूनकर सेवन करने से बवासीर में आराम मिलता है।
महुआ का घरेलू उपयोग
शरीर के जले हुए स्थान पर इसकी जली हुई पत्तियों को घी में मिलाकर लगाने से आराम मिलता है। बीज के तेल खाने में इस्तेमाल करने से पुरुषों में बांझपन आता है। इसके फूल से कई प्रकार के व्यंजन बनाए जाते हैं। जैसे- हलवा, लड्डू, जैम, बिस्कुट, सब्जी आदि, छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले के आदिवासी अधिकतर गुड़ की जगह पर महुए के पाग का इस्तेमाल करते हैं। यहां के लोग इसके साथ रोटी खाना पसंद करते हैं। महुआ की पत्तियां मवेशीयों के चारे के रूप में काम आती है।
Comments
फल तो मैने भी खाया है लेकिन बहुत कम मात्रा में और बहुत समय पहले|
लेकिन यह इतना फायदेमंद है ये आज पता चला मुझे|
धन्यवाद!