ज्वार भाटा की उत्पत्ति के लिए निम्नलिखित वैज्ञानिकों ने अपने सिद्धांत प्रस्तुत किए-
1. संतुलन सिद्धांत- न्यूटन 1687
2.प्रगामी तरंग सिद्धांत-विलियम व्हेल
3.स्थैतिक सिद्धांत- हैरिस
प्रगामी तरंग सिद्धांत-विलियम व्हेल
व्हेल ने न्यूटन के सिद्धांत के कमी को दूर करते हुए पृथ्वी को स्थल व जल से निर्मित असमांगी सतह मानकर प्रगामी तरंग सिद्धांत के द्वारा ज्वार भाटा की उत्पत्ति को स्पष्ट किया।इनके अनुसार दक्षिणी महासागर में जहां स्थल खंडों का अभाव है वहां चंद्रमा के आकर्षण बल के कारण एक ही समय 180° देशांतरीय दूरी पर स्थित दो स्थानों पर प्रभावित अंग के रूप में ज्वार की उत्पत्ति होती है। जिसे उन्होंने प्राथमिक तरंग का नाम दिया। इस तरंग के श्रृंग को ज्वार तथा गर्त को भाटा कहा। इनके अनुसार प्राथमिक तरंग पूर्व से पश्चिम की ओर गति करते हुए उत्तर की ओर अग्रसर होते हैं। जब उनके मार्ग में स्थानीय बाधाएं आती है तब यह तरंग द्वितीय तरंग में परिवर्तित हो जाते हैं। दक्षिण से उत्तर की ओर जाने पर ज्वारी तरंग की तीव्रता में कमी आती है, लेकिन एक ही देशांतर के सभी अक्षांशों पर ज्वार आने का समय एक समान नहीं होता है।
स्थैतिक सिद्धांत- हैरिस
हैरिस ने विलियम हेवल के सिद्धांत की आलोचना करते हुए यह विचार व्यक्त किया कि प्रगामी तरंग की उत्पत्ति असीमित विस्तार वाले जलीय भाग में हो सकती है न कि स्थल खंडों से घिरे हुए सागरो व खाड़ियों में। इन्होंने प्रगामी तरंग सिद्धांत के द्वारा ज्वार भाटा की उत्पत्ति की क्रिया विधि को स्पष्ट किया है जिसके लिए अंशतः जल से भरे हुए आयताकार बेसिन के साथ प्रयोग किया। इनके अनुसार यदि बेसिन के एक छोर या किनारे पर बल लगाया जाता है। तब ऐसी स्थिति में जल की सतह पर एक रेखा के सहारे दोलन होगा जिसे इन्होंने एकपाती प्रणाली का नाम दिया। इसी प्रकार द्विपाती प्रणाली के अंतर्गत जल की सतह पर दो रेखा के सहारे दोलन होने पर भी बेसिन के मध्य में जल की सतह पर कोई परिवर्तन नहीं होता है। जिसे हैरिस ने भंवर बिंदु का नाम दिया। इनके अनुसार भवर बिंदु के चारों तरफ अप्रगामी तरंग की उत्पत्ति होती है जिसके श्रृंग को ज्वार व गर्त को भाटा कहते हैं।
इस प्रकार हैरिस के अप्रगामी तरंग सिद्धांत के अनुसार स्थल खंड से घिरे हुए जलीय भाग में चंद्रमा के आकर्षण बल के प्रभाव से अप्रगामी तरंग के रूप में ज्वार भाटा की उत्पत्ति होती है जिसकी तीव्रता का चंद्रमा की आकर्षण बल के साथ बेसिन की गहराई व चौड़ाई भी निर्धारित करता है। सामान्यतः गहरी और संकरे बेसिन में ज्वारी तरंग की ऊँचाई अधिक होती है। वास्तव में ज्वार भाटा की उत्पत्ति एक विश्वव्यापी घटना न होकर समुद्र स्तर में होने वाले परिवर्तन से संबंधित एक क्षेत्रीय घटना है।
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