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Essay on chandrayaan-3 in hindi

अंतरिक्ष में भारत का योगदान



 भारत विश्व गुरु बन सकता है ,

योग पूरी दुनिया को स्वस्थ रख सकता है।

मंगल पर भी तिरंगे की परछाई है ,

क्योंकि हमारे साइंटिस्ट करिश्माई है।

सभ्यता की शुरुआत से ही मानव अंतरिक्ष की रोमांचक परिकल्पनाए  करता रहा है। अंतरिक्ष कभी अध्यात्म का  विषय बना तो कभी कविताओं कहानियों का। पारलौकिकतावाद से प्रभावित होकर मानव ने  इसे स्वर्ग और नर्क से जोड़ा तो मानवतावाद से प्रभावित होकर पृथ्वी को केंद्र मे रखा और अंतरिक्ष को परिधि मान लिया।

इंसानी जरूरते और जिज्ञासा ने इस प्रकार इतिहास रचा मानो जैसे-

मैं ठहरा मंगल ग्रह  प्रिये,

तुम उस पर जीवन पानी हो। 

मैं वन लाइनर वाली क्वेश्चन हूं,

तुम लंबी ढेर कहानी हो।

प्रश्नों के ढेर में बंधे मानव ने अंतरिक्ष में खोजी उत्तर ढ़ूढता रहा कभी काल्पनिक कहानियों में उत्तर को समेटा तो कभी प्रायोगिक रूप में। प्राचीन काल से ही अंतरिक्ष के रहस्यों को समझने के लिए अनेक विद्वानों जैसे आर्यभट्ट,कॉपरनिकस,भास्कर, न्यूटन आदि ने अंतरिक्ष के क्षेत्र में परिपक्व समझ विकसित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई जिसमें गैलीलियो ने दूरबीन जैसे यंत्र का अविष्कार करके और आसान बनाया।

                        साइकिल बैलगाड़ी से शुरू हमारी यात्रा ने हमें आज मंगल ग्रह और चांद की सैर करा दी। अगर बात करें भारत की तो 1947 के आजादी के बाद भारत की इतनी करूण स्थिति थी कि देश में खाने को अन्न नहीं था अंतरिक्ष की कल्पना तो दूर की बात थी। भारत में फैली गरीबी, भुखमरी, अकाल, बेरोजगारी, अंधविश्वास, जनसंख्या- विस्फोट के समाधान हेतु विज्ञान व तर्कवाद को महत्व दिया गया।

 इसीलिए स्टीफन हॉकिंस कहते हैं-

विज्ञान के माध्यम से ही समाज में फैली गरीबी और कुरीतियों को दूर किया जा सकता है।

अतः विज्ञान के महत्व को समझते हुए 1962 में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू जी ने  अंतरिक्ष अनुसंधान के लिए भारतीय राष्ट्रीय समिति' (इनकोस्पार) स्थापित किया जो 1969 में विक्रम साराभाई की मदद से इसरो में परिवर्तित हो गई।  जिसका मुख्यालय बेंगलुरु(कर्नाटक) में स्थापित किया गया जबकि प्रक्षेपण केंद्र सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र हरिकोटा आंध्र प्रदेश में स्थापित किया गया।

                         विश्व में सर्वप्रथम भारत के बिहार में जन्मे आर्यभट्ट ने 499 ईसवी में यह अनुमान लगाया कि पृथ्वी अपनी धुरी पर घूमती है। पृथ्वी की कक्षा गोलाकार नहीं बल्कि दीर्घवृत्ताकार है। ग्रहण क्यों लगता है आदि कारणों को बताएं। 1975 में भारत ने अपना पहला उपग्रह आर्यभट्ट इन्हीं के नाम से रूस के प्रक्षेपण केंद्र से प्रक्षेपित किया जिसने एक्स-रे ज्योतिष, कृषि विज्ञान तथा सौर भौतिकी के साथ प्रयोग को सुगम बनाया। 

अतः 

अंतरिक्ष के पास जा रहा है देश का अभिमान,

यह है देश भक्ति की अनोखी पहचान

               अंतरिक्ष के क्षेत्र में सेटेलाइट दो प्रकार के होते है जियोस्टेशनरी(पृथ्वी के बाहरी कक्षा में चारों तरफ घूमने वाला)।पोलर सेटेलाइट(ग्रह के उत्तरी ध्रुव से दक्षिणी ध्रुव की तरफ भ्रमण) जहां जियोस्टेशनरी सेटेलाइट ने दुनिया भर में संचार टेलीविजन, गूगल मैप और मौसम पूर्वानुमान में क्रांति लाई है तो वहीं पोलर सेटेलाइट ने मौसम विश्लेषण आंधी, तूफान चक्रवात, ज्वालामुखी विस्फोट जंगल की आग त्रासदी जैसे जानकारी देता है। 

                         1980 में एसएलवी-3 प्रक्षेपित कर भारत उन देशों की सूची में शामिल हो गया जो  स्वयं के उपग्रहों को प्रक्षेपित कर सकते हैं। अतः सेटेलाइट प्रक्षेपण केंद्र के मामले में भारत की आत्मनिर्भरता के ओर यह पहला कदम था। 

पहले अचानक आए आंधी, तूफान,चक्रवात, बादल का फटना, बाढ़ आदि त्रासदी से पीड़ित भारत कहीं अकाल से तो कहीं काल के गाल में समा जाता था। परंतु 1983 में प्रक्षेपित इनसैट-1B दूरसंचार, दूरदर्शन प्रसारण तथा मौसम पूर्वानुमान के क्षेत्र में क्रांति लाकर त्रासदी की प्रकृति कम करने में राहत डाली।

                         आकाश में रात में चमकने वाला चंद्रमा जो कभी बच्चों का 'चंदा मामा' तो कभी  'अजोरी माई'के नाम से जाना जाने वाला आकर्षण का प्रमुख केंद्र रहा। यह मानव को इस कदर आकर्षित किया कि मानव ही वहां जा पहुंचा जैसे कि नील आर्मस्ट्रांग।

अतः प्रसून जोशी ने ठीक ही कहा है-

अंतरिक्ष में गूंज उठे,हम चंद्रमा का गान लिए 

चांद तिरंगे रंग में रंगा,नयी एक पहचान लिए। 

मेरे भारत के वैज्ञानिक तुम गौरव हो भारत का 

ऊंचा माथा लिए खड़े हम, सच्चा एक अभिमान लिए।

                              2008 में भारत में अगला मिशन चंद्रयान-1 भेजा। इस प्रकार चांद पर तिरंगा लहराने वाला विश्व का चौथा देश भारत बन गया। चंद्रयान-1 ने चांद पर पानी की खोज कर चांद पर जीवन की उम्मीद जगा दी। चंद्रयान मिशन को और अधिक सफल बनाने के लिए 2019 में चंद्रयान-2 भेजा गया। दुनिया की निगाहें टिकी थी। लोगों के जहन में चांद पर बसने की उम्मीदे जगी थी परंतु दुर्भाग्यवश चंद्रमा के सतह से सिर्फ 2 किलोमीटर ही दूर था तभी अचानक संपर्क कंट्रोल रूम से टूट गया और क्षण भर में ही चंद्रयान-2 दुर्घटनाग्रस्त हो गया अंततः मिशन फेल हो गया।

 यहां पर ठीक उसी तरह की भावनाएं उत्पन्न होते हैं जैसे-

आकर तेरी आंगन में बस खोया हूं मैं ,

पल भर के लिए सब की धड़कन को रुकाया हूं मैं।

 हां पता है बहुतों को आज रुलाया हूं मै,

 पर करोड़ों दिलों में अपने लिए इज्जत भी कमाया हूँ मै।

भारत ने फिर भी हार न मानी अपनी गलतियों से सीखा तथा अनुभवी देशों की सलाह मानी और फिर चंद्रयान-3 भेजने का फैसला लिया। 

क्योंकि-

तू चांद है, तू तेरे नखरे तो दिखाएगा ही।

 यह भारत तेरा आशिक है, लौटकर आएगा ही।।

हाल ही में भारत ने 14 अगस्त 2023 को चंद्रयान-3 प्रक्षेपित किया और 23 सितंबर 2023 को सफलतापूर्वक लैंडिंग कर मिशन सफल हुआ है। इसका उद्देश्य इलाके के सतह का विश्लेषण करना, खनिज संरचना तथा रसायन, वायुमंडल की विशेषताएं और महत्वपूर्ण रूप से पानी और संभावित संसाधन जलाशयों की खोज कर मानव जीवन को आसान बनाने मे कारगर साबित होगा।

                           यदि बात करे मंगल ग्रह की तो ज्योतिष विज्ञान में मंगल ग्रह को शुभ-अशुभ  के प्रतीक के रूप में समझा जाता था। जहाँ पहले मानव जीवन पर मंगल का प्रभाव हुआ करता था तो वहीं आज मंगल पर मानव का प्रभाव नजर आता दिखाई दे रहा है। 

किसी ने ठीक ही कहा है-

निष्क्रिय होने से पहले एक बात मेरी याद रखना-

 ठंडा कर देना उस मंगल की सारी प्रकोप को मंगलयान,

बड़ी धूम मचा रखी है यहां वह हर किसी के जिंदगी में।

भारत में 2014 में मंगल की धरती पर मंगलयान भेजकर सफलता हासिल की। इस मिशन के साथ ही भारत दुनिया का पहला देश बन गया है जो एक ही बार में सीधे मंगल ग्रह तक पहुंच गया।यह ठीक उसी सफलता की तरह था जिस तरह  से-

मंगल पर मानव भविष्य की दिशा में 

मंगलयान मानव का अहम उड़ान है।

इतना ही नहीं, इसरो ने अब तो आग की तरह धधकते हुए तारे यानी सूर्य के  अवलोकल के लिए आदित्य L1 को भी भेज दिया। जो सूर्य के आसपास के वायुमंडल का अध्ययन करेगा इसके अलावा भारत यानी इसरो 2030 तक अपना अंतरिक्ष स्टेशन स्थापित करने की विधि योजना बना रहा है।

इस प्रकार अंतरिक्ष की यात्रा ने अंधविश्वासी जीवन से सत्य की खोज पर लाए संचार माध्यम ने विश्व बंधुत्व स्थापित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई तो वहीं गूगल मैप, टेलिफोन आदि अपने घर बैठे दुनिया तक पहुंच सुनिश्चित कराई।

निष्कर्षतः सेटेलाइट के महत्व को इस कविता से जान सकते हैं-

आओ सुने सेटेलाइट की जुबानी,

 अंतरिक्ष की कई अनमोल कहानी।

 अंडे जैसी अपनी धरती,

 सूरज का चक्कर है करती।

एक बात की बांधो गांठ ,

ग्रहों की होती संख्या आठ।

आओ मन में कर ले सुध,

 सबसे छोटा ग्रह है बुध।

सुनो भाई सूरज है एक तारा ।

बड़ा ग्रह है बृहस्पति प्यारा।

शुक्र ग्रह सबसे चमकीला ,

पृथ्वी को कहते ग्रह नीला।

 एक बतानी और है बात,

कैसे होते दिन और रात।

पृथ्वी धूरी पर घूमा करती ,

संग में सूर्य परिक्रमा करती।

 जिधर रोशनी पड़े हो प्रातः,

 शेष जगह होती है रात!










Comments

Anonymous said…
बहुत ही सरल , सुन्दर ,तथ्यात्मक एवं बोधगम्यता पूर्ण भाषा शैली । बहुत ही सुन्दर क्रमबद्धता पूर्ण लेखन । हार्दिक शुभकामनाएं 🙏💐
Anonymous said…
सराहनीय!!
Anonymous said…
बहुत शानदार

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