कोई भी व्यक्ति अपने आसपास के वातावरण में होने वाली गतिविधियों से सीखता है तथा जीवन के अनुभव को ग्रहण करता है और उन्ही अनुभव को कायदे कानून मानते हुए जीवन के रास्ते में ऊंचाइयों तक बढ़ता है। ऊंचाइयों तक पहुंचने वाले व्यक्ति महान व्यक्तित्व के रूप में उभरकर सामने आते हैं। उन्हीं महान व्यक्तित्व में से एक शानदार व्यक्ति है डॉक्टर भीमराव बाबासाहेब रामजी आंबेडकर परंतु वर्तमान में इन्हें जाति विशेष का नेता मान लिया गया जबकि उससे कहीं ज्यादा उन्होंने भारतीय महिलाओं की स्थिति सुधारने में काफी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई क्योंकि जातिवाद से कहीं ज्यादा महिलाओं की स्थिति दयनीय थी।
जबकि दूसरे नंबर पर जातिवाद की समस्याए है।आज भी अधिकतर महिलाएं अपने अधिकारों को नहीं जानती है इसलिए अंबेडकर जी के महत्वाकांक्षा को समझने में असमर्थ है। उन्होंने केवल जाति विशेष को दर्जा नहीं दिलाया बल्कि समाज के उन सभी वंचित वर्गों को अधिकार दिलाया जो उसके हकदार थे परंतु जिस हर्षोल्लास के साथ अंबेडकर जयंती निम्न जाति के लोगों द्वारा मनाया जाता है उतनी जश्न के साथ उच्च जाति तथा महिलाओं द्वारा नही। हां, यह बात सत्य है कि वह निम्न वर्ग के व्यक्ति थे जिसकी वजह से उनका अनुभव उस जाति में अत्यधिक रहा, परंतु वह समाज में होने वाले सभी गतिविधियों पर ध्यान देते थे जिसमें की महिलाओं की स्थिति ज्यादा बद से बदतर थी। सामाजिक भेदभाव को दूर करने के लिए कुछ महिलाओं ने भी आवाज उठाई उसमे से एक कहानी है केरल की।
1.हेड टैक्स- यह निम्न जाति के पुरुषों पर लगाया जाने वाला टैक्स था ।
2.ब्रेस्ट टैक्स-
नांगेली गाँव-किंवदंती एक एझावा महिला के बारे में है जो भारत के त्रावणकोर की तत्कालीन रियासत में चेरथला में 19 वीं शताब्दी की शुरुआत में रहती थी और जाति-आधारित "स्तन कर" का विरोध करने के प्रयास में अपने स्तनों को काट दी थी। जो बाद मे जाकर 1924 में ब्रेस्ट टैक्स के विरोध में ब्रिटिश सरकार द्वारा कानून बनाए गए।
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3.नादार समुदाय- केरल में ही ओबीसी वर्ग के नादार समुदाय की महिलाओं को भी ब्रेस्ट टैक्स देना पड़ता था जिसके वजह से उन्होंने कैथोलिक धर्म को अपना लिया और जिससे कि वह अपने शरीर को पूरी तरह से ढक सके, जिसके एवज में 1859 में 2 महिलाओं को फांसी दे दी गई।
समाज मे ऐसी कुप्रथा को लेकर कुछ लोगों ने तो अपनी लड़ाई खुद ही लड़ी तो कुछ लोग असमर्थ हो गए और उनकी स्थिति दयनीय हो गई जिससे प्रभावित होकर डॉक्टर भीमराव अंबेडकर ने समाज सुधार के लिए अपने अनेक विचार दिए।
तो आइए जानते हैं उनके कुछ विचारों को-
- उनके द्वारा स्वतंत्र भारत में श्रम कल्याण के लिए दिशा-निर्देश दिए गए श्रम चार्टर को भी प्रतिपादित किया।

- मजदूरों अथवा कामगारो के कल्याण के लिए अवकाश

- मातृत्व लाभ स्वास्थ्य
- भारत में देवदासी प्रथा लम्बे समय से चल रही है. देवदासी प्रथा में तथाकथित नीची जाति की लड़की की मंदिर की मूर्ति से शादी करा दी जाती है। मूर्ति के नाम पर पुजारी उसका यौन शोषण करते हैं। उस लड़की की जो संतान होती है उसे देवी मां की संतान बोला जाता है। देवदासी कोई सवर्ण महिला नहीं बनती है इसलिए इसका प्रत्यक्ष अनुभव उन्हें नहीं है। अतः देवदासी प्रणाली को समाप्त करने का आह्वान किया ।
हिंदू कोड बिल (1951) के माध्यम से महिलाओं को शिक्षा, संपत्ति और तलाक के अधिकार की वकालत की।
- स्वच्छता और सामाजिक सुरक्षा की भी वकालत किये इसलिए स्वतंत्रता, समानता, नैतिकता और बंधुत्व पर आधारित राज्य नियंत्रण समाज की स्थापना के लिए, सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक सभी क्षेत्रों में सभी प्रकार की समानताएं लागू करने की आवश्यकता है।
उन्होंने काफी सारी किताबें लिखी जो समाज सुधार तथा कानून बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनके द्वारा लिखी गई किताबें निम्न है-
- भगवान बुद्ध और उनका धम्म
- शूद्र कौन?
- बुध्द या कार्ल मार्क्स
- जाति का विनाश एवं संहार
- Pakistan or the partition of India
- Rise & fall of Hindu woman
- रुपए की समस्या
- Anhilition of the caste
- भारत में जनजातियाँ( उनकी संरचना उत्पत्ति एवं विस्तार)
किताबों के ज्ञान तथा सामाजिक अनुभवों से वह इतना अनुभूत हो गए थे कि डॉ आंबेडकर आने वाली समस्याओं को पहले से ही भांप लेते थे अर्थात उनकी सोच दूरदर्शी थी।समाज के लिए उनके द्वारा दिए गए विचार को संवैधानिक दर्जा प्राप्त हुआ।
चाहे बाबासाहेब आंबेडकर हो, चाहे महात्मा गांधी हो या फिर महाराजा सुहेलदेव। इन महान व्यक्तियों ने समाज में होने वाली बुराइयों को दूर करने का प्रयास किया। इसलिए ये लोग समाज सुधारक है ना की किसी राजनीतिक पार्टी के नेता। इन सभी महान व्यक्तियों का उपयोग राजनीतिज्ञ अपने राजनीति के तौर पर करते आ रहे है जो दिन-प्रतिदिन जातिवाद तथा धार्मिक विवाद का कारण बनता जा रहा है। जिसका परिणाम आम जनता को भुगतना पड़ रहा है इसीलिए किसी भी महान व्यक्तियों के जाति के आधार पर पूजना बंद करना चाहिए तथा उनके आदर्शों तथा उनके व्यक्तित्व के आधार पर उनको पूजना चाहिए और यह प्रत्येक जाति वर्ग व्यक्ति के लिए संदेश है।
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