Skip to main content

Essay on Woman Empowerment in Hindi

निबंध-महिला सशक्तिकरण अथवा नारी शक्ति को बल कैसे दें?



                 नारी सशक्तिकरण से तात्पर्य 'महिलाएं अपने जीवन के निर्णय स्वयं लेने लगे' क्योंकि महिलाएं समाज के निर्माण का आधार होती है। पितृसत्तात्मक रूपी समाज उनके वंचन का जिम्मेदार है ऐसे में उन्हें सामाजिक, आर्थिक, शैक्षणिक, राजनीतिक मजबूती प्रदान करने की आवश्यकता है।

                       सिंधु सभ्यता से समाज मातृसत्तात्मक था परंतु उसके बाद विदेशियों के आगमन के पश्चात भारतीय समाज कमजोर होने लगा। सत्ता पर पितृसत्ता /विदेशी शक्तियाँ हावी होने लगी। तत्पश्चात महिलाओं का स्तर समाज में गिरता गया।

                  उन्हें शिक्षा से वंचित रखा गया जिससे रूढ़िवादी परंपराओं,और मान्यताओं में बांधने में आसानी हुई। पर्दा प्रथा, सती प्रथा, बाल विवाह जैसी अनेक कुरीतियों मे फंसती चली गयी। इसके अलावा राजघराने में जन्मी दहेज प्रथा एक सामाजिक मुद्दा बन गया है। अतः लड़की का जन्म होना बोझ सा होने लगा। परिणामतः शिशु हत्या जैसी समस्या उत्पन्न होने लगी।

           परिणाम स्वरूप लिंगानुपात में महिलाओं की संख्या गिर गई। आश्चर्य की बात तो यह है कि हरियाणा तथा गौतम बुद्ध नगर(उत्तर प्रदेश) जैसे विकसित क्षेत्रों में लिंगानुपात सबसे कम है। इस बात पर एक सवाल उठता है कि-

मां चाहिए,

 बहन चाहिए,

बीवी चाहिए,

 तो फिर बेटी क्यों नहीं?

       "कहा जाता है कि वर्तमान बीते हुए कल का ही परिणाम है। इसलिए वर्तमान को सुधारा जाए तो भविष्य में सुधार देखने को मिलेगा। अतः महिलाओं की वर्तमान दुर्दशा बीते कल का ही परिणाम है।" हालांकि समय-समय समाज सुधारको  ने सुधार किए जैसे राजा राममोहन राय ने अंग्रेजों की सहायता से सती प्रथा, शिशु हत्या को समाप्त करने की कोशिश की। बाल-विवाह केशव चंद्र सेन के अलावा शारदा अधिनियम (1929) के द्वारा रोकने का प्रयास किया गया क्योंकि-

पढ़ने खेलने की उम्र है,

 बाल विवाह जुर्म है।

                शैक्षणिक क्षेत्र में ज्योतिबा राव फुले पत्नी सावित्रीबाई फुले, ईश्वर चंद्र विद्यासागर,डी के कर्वे आदि लोगों ने महिला शिक्षा को प्रोत्साहित किया। परंतु आज भी इस क्षेत्र में असमानता को देखने को मिलती है जैसे लड़कों के शिक्षा पर विशेष ध्यान देना जबकि लड़कियों की शिक्षा पर कम। महिला शिक्षा के सुधार हेतु अनेक सरकारी योजनाएं चलाई गई जैसे बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ, सुकन्या समृद्धि योजना इत्यादि। इसके अलावा बिहार सरकार ने सिविल क्षेत्र में यूपीएससी तथा बीपीएससी की परीक्षा पास करने हेतु महिलाओं को क्रमशः एक लाख तथा ₹50000 की धनराशि आवंटित कर रही है।

                   भारत के केरल राज्य की बात करें तो वहां महिलाओं के उच्च स्तर की शिक्षा के साथ ही लिंगानुपात भी उच्च है तथा भारत का सबसे विकसित राज्य भी है। अतः यहां महिलाओं की स्थिति बेहतर है, परंतु अन्य जगह नहीं, क्योंकि यहां सब लोग यह भूल जाते हैं कि समाज महिलाओं से भी मिलकर बनता है अतः

हमारे समाज में बेटी के शिक्षा के बजाय विवाह पर ज्यादा खर्च किया जाता है।

                  इससे लोग सामाजिक तरफदारी और मान-सम्मान तो पा लेते हैं परंतु महिला का कम पढ़े-लिखे होने के कारण वैवाहिक जीवन दूसरे पर निर्भर हो जाता है जिससे स्वयं के निर्णय लेने काअधिकार भी समाप्त हो जाता है। 

                यदि राजनीतिक क्षेत्र में बात करें तो वर्तमान में महिलाओं की भागीदारी मात्र 14 % के साथ अत्यंत ही कम है। भारत एक लोकतंत्र देश है और कहा जाता है कि लोकतंत्र में मूर्खों का जहां कम पढ़े-लिखे झूठे वादे करने वाले पुरुष वर्ग शासन में आ सकते हैं तो फिर महिलाएं क्यों नहीं?

              राजनीति में महिलाओं की हिस्सेदारी हेतु हाल ही में संसद ने नारी शक्ति वंदन विधेयक बिल पास कर महिलाओं की 33% सीटें आरक्षित कर इतिहास रचा। हालांकि इससे पहले बिहार सरकार ने पंचायती चुनाव में 33% सीटें आरक्षित कर  महिलाओं को भी शासन की बंदूक थमा चुकी है। इस बात पर यहां नागार्जुन की वो छोटी सी कविता याद आती है-

खड़ी हो गई चाँपकर कंकालों की हूक

नभ में विपुल विराट-सी शासन की बंदूक


उस हिटलरी गुमान पर सभी रहें है थूक

जिसमें कानी हो गई शासन की बंदूक


बढ़ी बधिरता दस गुनी, बने विनोबा मूक

धन्य-धन्य वह, धन्य वह, शासन की बंदूक


सत्य स्वयं घायल हुआ, गई अहिंसा चूक

जहाँ-तहाँ दगने लगी शासन की बंदूक


जली ठूँठ पर बैठकर गई कोकिला कूक

बाल न बाँका कर सकी शासन की बंदूक


           शासन रूपी बंदूक को महिलाओं का भी चलाना जरूरी है ताकि महिलाएं घर की जिम्मेदारी ही नहीं वरन् क्षेत्रीय समस्याओं को निजात दिलाने में भी अपनी भूमिका निभाकर सामाजिक संतुलन बनाने मे सहयोग करे जैसे कि द्रौपदी मुर्मू, प्रतिभा पाटिल, मायावती, सरोजिनी नायडू इत्यादि महिलाओं ने राजनीति के क्षेत्र में अपनी खुद की पहचान बनाते हुए की।

               तो आइए चलते हैं अब महिलाओं के पहचान की ओर जहां महिलाएं पिता या पति के नाम से जानी जाती हैं। उत्तर भारत में फैली घूंघट प्रथा को ही देख लीजिए जो समाज में नारी के प्रतिनिधित्व को समाप्त करती है।

जरा सोचिए-

कहां से लाए थे तुम घूंघट का यह रिवाज,

 मास्क तक नहीं झिलता जो तुमसे आज।

           हालाँकि इस कुरीति को समाप्त करने हेतु राजस्थान जैसे राज्य अनेक अभियान चला रहे हैं। राजनीति में महिलाओं की भागीदारी उनके पहचान के लिए अप्रत्यक्ष रूप से उत्तरदायी होगा। 

                   यदि बात करे आर्थिक क्षेत्र कि तो  यहां महिलाओं की भागीदारी न्यूनतम है। यह समाज के विभिन्न पहलुओं का परिणाम है। समाज की पितृसत्तात्मक सोच के कारण महिलाओं को आर्थिक योगदान हेतु घर से बाहर निकलने नहीं दिया जाता और अनुमति मिल भी जाती है तो कार्यस्थल अथवा समाज में शारीरिक व मानसिक उत्पीड़न का शिकार होना पड़ता है।

         अब कृषि के क्षेत्र में ही देख लीजिए यहा तो  लैंगिक असमानता का वर्चस्व इतना प्रभावी है कि माध्यमिक स्कूल में लड़कों को खेती संभालने हेतु कृषि पढ़ाया जाता है तो वहीं लड़कियों को घर संभालने हेतु गृह विज्ञान पढ़ाया जाता है जबकि कृषि में भी घाटे के कारण ज्यादातर पुरुष रोजगार के खोज में    पलायन कर जाते हैं तब उस खेत को वहीं महिलाएं संभालती हैं जिनको कृषि शिक्षा से वंचित किया गया। इस प्रकार हम देखते हैं कि-

   संसाधनों का वंचन ही गुणवत्ता के गिरावट का कारण है जो लैंगिक भेदभाव को जन्म देती है।

          परिणामतः इनके आय में कटौती की जाती है हालांकि हाल के वर्षों में भारत में आय के समानता हेतु संवैधानिक प्रावधान किया गया है क्योंकि-

जब होगी स्त्री पुरुष में समानता,

तभी रुकेगी यह विषमता।

नहीं है स्त्री किसी से कम, 

हर काज में वह है सक्षम।

               सरकार के विभिन्न छोटे-छोटे प्रयासों से महिलाओं में सुधार देखने को मिल रहा है। भारत  के जनजाति बहुल आबादी से हमें सीखने की आवश्यकता है जहां महिला तथा पुरुष कंधा से कंधा मिलाकर आपस के अधिकारों को मर्यादा पूर्वक बनाए हुए आगे बढ़ रहे हैं। 

              निष्कर्षतः  2022 के यूपीएससी रिजल्ट में टॉप टेन में 6 महिलाओं ने टॉप किया तथा जनजाति क्षेत्र से चुनी गई हमारी राष्ट्रपति द्रोपति मुर्मू महिला सशक्तिकरण का ही परिणाम है। अतः-

 स्त्री की उन्नति राष्ट्र की प्रोन्नति है।

Comments

Anonymous said…
Bahut acha
Anonymous said…
Good 👍👍😊

Popular posts from this blog

हिस्टीरिया: भूत-प्रेत या बीमारी

हिस्टीरिया   भूत-प्रेत में विश्वास पीढ़ियों से भारत के लोगों के दिमाग में गहराई से जुड़ा हुआ है और यह आधुनिक तकनीक और वैज्ञानिक विकास के युग में अभी भी बना हुआ है। भारत में कई कथित तौर पर भूत से पीड़ित स्थान हैं, जैसे कि जीर्ण इमारतें, शाही मकान, किले, बंगले, घाट आदि। कई फ़िल्मों का निर्माण इसपर किया जा चुका हैं। मुहावरें के रूप में भी इनका प्रयोग होता हैं, जैसे: भूत सवार होना, भूत उतारना, भूत लगना, आदि। भूत प्रेत के ज्यादातर मामले ग्रामीण क्षेत्रों में देखने को मिलता है। ग्रामीण क्षेत्रों की महिलाओं एवं पुरुषों में देखा जाए तो ऐसे मामले महिलाओं में अधिक देखा जाता है। भूत-प्रेत के मामले अंधविश्वास में अहम रोल निभाते हैं। कई बार इस प्रकार के अंधविश्वास समाज में गंभीर समस्या उत्पन्न कर देते हैं जैसे- 1. एक महिला के अंदर भूत प्रवेश करता है और वह जोर-जोर से कभी चिल्लाती तो कभी हंसती और कभी-कभी गाली गलौज करती है। उसके उपचार के लिए तांत्रिक बुरी तरह से उसे मारते पीटते हैं जिससे कभी-कभी मौत हो जाती है। 2.एक पड़ोसी अपने दूसरे पड़ोसी से भूत प्रेत के चक्कर में लड़ाई कर लेते हैं। यहां तक कि ...

Thought: conditions and human nature